नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में बवाल के बाद भारत को सतर्क रहना चाहिए?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

हाल के दिनों में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल — ये तीनों पड़ोसी देश किसी न किसी रूप में राजनीतिक उथल-पुथल से गुज़र रहे हैं।
लोग सड़कों पर हैं, सत्ता डगमगाई हुई है, और जनआंदोलन तेज़ी से डिजिटल स्पेस से निकलकर जमीन पर आ चुका है।

अब सवाल ये उठता है:
“Should India be worried?”

श्रीलंका: आर्थिक संकट से लेकर सत्ता पलट तक

श्रीलंका में आर्थिक संकट इतना गंभीर हो गया कि जनता ने राष्ट्रपति आवास तक पर कब्ज़ा कर लिया।

  • Fuel, दवाएं और खाने-पीने की चीजें खत्म हो चुकी थीं। Black market का बोलबाला था, IMF bailout की चर्चा ने राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ा दिया।

देश की जनता तब चुप नहीं रहती जब रसोई से गैस और जेब से पैसा दोनों गायब होने लगते हैं।

बांग्लादेश: लोकतंत्र या डिजिटल नियंत्रण?

बांग्लादेश में हालिया प्रदर्शन बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को लेकर थे। जनता का भरोसा टूट रहा है — खासकर युवा वर्ग का, जो सोशल मीडिया के ज़रिए mobilize हो रहा है।

जब सरकारें फ्री स्पीच को कंट्रोल करने की कोशिश करती हैं, तो जनता खुद को louder बना लेती है — इंटरनेट की मदद से।

नेपाल: Gen Z का जनसुनवाई मॉडल

नेपाल का सबसे ताज़ा संकट दिखाता है कि अब क्रांति केवल पार्टियों के बैनरों से नहीं, Hashtags और Reels से होती है। सोशल मीडिया बैन के विरोध में हुए प्रदर्शन में 20 से अधिक लोगों की मौत, राजधानी काठमांडू में हिंसा, PM केपी शर्मा ओली का इस्तीफा। युवा नेता बालेन शाह का नाम सामने आ रहा है — एक मेयर, जो जनता का भरोसा बन गया है।

जब Youth Disconnect हो जाता है, वो किसी भी राजनीतिक समीकरण को पलट सकता है।

भारत: क्या हमें चिंता करनी चाहिए?

भारत की स्थिति अभी स्थिर है, लेकिन ये स्थिरता कब तक बनी रहेगी — ये कई सामाजिक और डिजिटल फैक्टर्स पर निर्भर है:

  • Rising youth unemployment

  • Social media censorship की बढ़ती बहस

  • Public frustration with governance gaps

  • Inflation vs Income का widening gap

जो बातें आज नेपाल, बांग्लादेश या श्रीलंका में हो रही हैं, कल वही सवाल भारत की जनता भी पूछ सकती है:
“हमारे टैक्स से जो सिस्टम चल रहा है, वो हमारी सुन क्यों नहीं रहा?”

डिजिटल जनसंपर्क बनाम डिजिटल विरोध

India में सोशल मीडिया को अभी भी एक “fun space” माना जाता है, लेकिन पड़ोसी देशों ने दिखाया है कि ये digital battlefield भी बन सकता है।

यदि सरकारें सोशल मीडिया को केवल कंट्रोल का टूल मानती रहेंगी, और dialogue की जगह surveillance को तरजीह देंगी — तो dissent जल्दी ही आंदोलन में बदल सकता है।

भारत को क्या करना चाहिए?

India के पास अभी मौका है कि वो proactive रहे, reactive नहीं। नीचे कुछ पॉइंट्स दिए गए हैं जो नीति-निर्माताओं के लिए गाइडलाइन हो सकते हैं:

  1. Youth Engagement को गंभीरता से लें — उन्हें सिर्फ चुनावी Token न बनाएं।

  2. Transparent Digital Policies बनाएं — जो नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित न करें।

  3. Local Governance को मज़बूत करें — ताकि लोग केंद्र पर ही निर्भर न रहें।

  4. Feedback Channels Active करें — ताकि विरोध शुरू होने से पहले समाधान निकल सके।

  5. Trust Building करें, Surveillance नहीं — क्योंकि आज का युवा केवल प्रचार नहीं, प्रमाण चाहता है।

सिर्फ ‘देखना’ नहीं, ‘सीखना’ चाहिए

पड़ोसी देशों में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ बाहरी संकट नहीं, बल्कि आइना है — जिसमें हम खुद को देख सकते हैं। भारत को यह समझना होगा कि आधुनिक युग की राजनीति अब केवल सत्ता और चुनाव नहीं, बल्कि जवाबदेही और संवाद का खेल है।

“Democracy की खूबसूरती केवल चुनाव में नहीं, उस चुनाव के बाद जनता की आवाज़ सुनने में है।”

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